पितरों के लिए मोक्ष का द्वार: जहां पांडवों ने किया तर्पण और मिली पितृ ऋण से मुक्ति

Share on Social Media

हरदोई

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित हत्या हरण तीर्थ, पितृपक्ष के दौरान लोक और परलोक के बीच की दूरी को समाप्त कर देता है. यह पवित्र स्थल अनादि काल से पितरों के ऋण से मुक्ति, भटकती आत्माओं की शांति और मोक्ष के लिए जाना जाता है. रामायण और महाभारत काल से चली आ रही परंपराएं इस स्थान को और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं.

पृथ्वी के मध्य में स्थित पवित्र स्थल
यह तीर्थ स्थल हरदोई जिले के बेनीगंज क्षेत्र में स्थित है. कहा जाता है कि यह स्थान पृथ्वी के मध्य भाग में पड़ता है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान यह स्थल लोक और परलोक के बीच की दूरी को मिटा देता है. यहां किए गए कर्मकांड और पूजा-अर्चना सीधे पितरों तक पहुंचती है. यही कारण है कि पितृपक्ष में यहां श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है.

हरदोई के बेनीगंज क्षेत्र में स्थित हत्याहरण तीर्थ का धार्मिक महत्व रामायण और महाभारत काल से है. वेदों के अनुसार, यह स्थान कभी भगवान शिव की तपोस्थली हुआ करता था.शिव पुराण के मुताबिक, माता पार्वती की प्यास बुझाने के लिए भगवान शिव ने सूर्य देवता से प्राप्त जल को यहां गिराकर एक कुंड का निर्माण किया था. इसी कुंड से देवी पार्वती ने जलपान किया था।

महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों ने अपने पारिवारिक जनों की हत्या के पश्चात् यहीं पर पितरों का तर्पण किया था.माना जाता है कि इस स्थान पर श्राद्ध और तर्पण करने से अतृप्त आत्माओं को शांति और मोक्ष मिलता है.इसी तरह, भगवान श्री राम ने भी अयोध्या लौटते समय ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए इस कुंड में स्नान किया था, जिसके बाद से यह स्थान मोक्ष प्रदान करने वाले तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

नैमिषारण्य से जुड़ा महत्व
यह तीर्थ क्षेत्र 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली नैमिषारण्य के नजदीक स्थित है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है. नैमिषारण्य को स्वयं वेदों और पुराणों में तप और ज्ञान का केंद्र माना गया है. इसलिए हत्या हरण का अध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व दोनों ही अत्यधिक गहरा है.

पितृपक्ष में विशेष महत्व
पितृपक्ष के दौरान यहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने आते हैं. मान्यता है कि यहां किए गए दान-पुण्य और स्नान से पितरों की कृपा बरसती है. स्थानीय लेखक पुनीत मिश्रा के अनुसार, यहां का वातावरण पितृपक्ष में मेले जैसा हो जाता है. कुंड के आसपास प्राचीन वृक्ष और पत्थर आज भी इस स्थल की प्राचीनता और दिव्यता का प्रमाण देते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *