यूका का कचरा ले जाने भोपाल और पीथमपुर के बीच बनेगा 250 किमी का ग्रीन कॉरीडोर

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भोपाल
 यूनियन कार्बाइड का कचरा भोपाल से पीथमपुर भेजने की तैयारी शुरू हो गया। रविवार से इसके पैकेजिंग की शुरुआत हो गई है। इस बीच भोपाल गैस त्रासदी राहत विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने रविवार को लोगों की चिंता दूर की। उन्होंने बताया कि यूनियन कार्बाइड प्लांट के जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने से आसपास के गांवों की जमीन और मिट्टी पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। यह कचरा 1984 की भोपाल गैस त्रासदी का है। इसे पीथमपुर में सुरक्षित तरीके से नष्ट किया जाएगा।

यूनियन कार्बाइड का है कचरा

सिंह ने बताया कि पीथमपुर में जो रासायनिक कचरा नष्ट किया जा रहा है, वह यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में बने कीटनाशक का अवशेष पदार्थ है। उन्होंने कहा कि यह मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) जितना खतरनाक नहीं है। MIC का इस्तेमाल कीटनाशक बनाने में होता है। 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल में MIC गैस का रिसाव हुआ था, जिससे भयानक त्रासदी हुई थी।

अलग से लैंडफिल का निर्माण किया गया

सिंह ने आश्वासन दिया कि कचरे को जलाने के दौरान यह पानी या मिट्टी के संपर्क में न आए, इसके लिए लैंडफिल बनाया गया है। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश पर विशेषज्ञों की निगरानी में 10 टन कचरा पहले ही नष्ट किया जा चुका है। इससे आसपास के इलाके में कोई नुकसान नहीं हुआ है।

337 मीट्रिक टन है कचरा

1984 की त्रासदी का लगभग 337 मीट्रिक टन पैक किया हुआ जहरीला कचरा सुरक्षित निपटान के लिए पीथमपुर ले जाया जाएगा। भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट से पीथमपुर के रासायनिक कचरा निपटान केंद्र तक 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा। सिंह ने बताया कि अभी सही समय नहीं बताया जा सकता। लेकिन, पैक किए गए कचरे के निपटान के बारे में 3 जनवरी को MP उच्च न्यायालय में एक हलफनामा पेश किया जाएगा। यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाएगी कि उससे पहले कचरा पीथमपुर पहुंच जाए।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशों के अनुसार पैकिंग

सिंह ने कहा कि जहरीले कचरे की पैकिंग, लोडिंग, परिवहन और अनलोडिंग केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशानिर्देशों के अनुसार की जाएगी। जहरीले कचरे को जलाने के लिए सुरक्षित रूप से उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाएगा।

लंबे समय से मुआवजे की मांग

भोपाल गैस त्रासदी के बाद, ज़हरीले कचरे के निपटान और पर्यावरणीय मुआवजे की मांग लंबे समय से चली आ रही है। 1984 की त्रासदी के बाद, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया गया था। लेकिन पर्यावरणीय क्षति को अनदेखा कर दिया गया। 2004 में, आलोक प्रताप ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें जहरीले कचरे के वैज्ञानिक निपटान की मांग की गई। उनके बेटे अनन्या अब इस लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं। एनजीओ ZGKSM, जो त्रासदी पीड़ितों के लिए लड़ रहा था, को हाल ही में उसके परिसर से हटा दिया गया है।

मिट्टी भी जहरीली

अनुमान है कि फैक्ट्री के नीचे लगभग 1.5 मिलियन टन ज़हरीली मिट्टी दबी हुई है। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद, ZGKSM नाम के एक NGO ने एक मार्मिक लोगो अपनाया। इस लोगो में "नो हिरोशिमा, नो भोपाल" लिखा था। साथ ही एक अज्ञात बच्चे के दफनाने की एक काली और सफेद तस्वीर भी थी। उस समय, पर्यावरण की चिंताएं गौन थीं। ऑर्गेनिक खाने का कोई महत्व नहीं था। इनका ध्यान रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल पर था। भोपाल प्लांट में भी ऐसे ही उर्वरक बनते थे। इनका इस्तेमाल वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए किया जाता था।

विशेष पीपीई किट पहने कई कर्मचारी और भोपाल नगर निगम, पर्यावरण एजेंसियों, डॉक्टरों और भस्मीकरण यानी कूड़ा जलाने वाले विशेषज्ञों के अधिकारी साइट पर काम करते देखे गए. फैक्ट्री के आसपास पुलिस भी तैनात की गई थी.

सूत्रों ने बताया कि जहरीले कचरे को भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर इंदौर के पास पीथमपुर में एक भस्मीकरण स्थल पर ले जाया जाएगा.

मप्र हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर को फैक्ट्री से जहरीले कचरे को हटाने के लिए चार सप्ताह की समय सीमा तय की थी. अदालत ने कहा था कि गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी अधिकारी 'निष्क्रियता की स्थिति' में हैं, जिससे 'एक और त्रासदी' हो सकती है.

इसे 'दुखद स्थिति' बताते हुए उच्च अदालत ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि उसके निर्देश का पालन नहीं किया गया तो उसके खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही की जाएगी.

राज्य के गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने एक न्यूज एजेंसी से कहा, "भोपाल गैस त्रासदी का कचरा एक कलंक है, जो 40 साल बाद मिट जाएगा. हम इसे सुरक्षित तरीके से पीथमपुर भेजकर इसका निपटान करेंगे."

उन्होंने कहा कि भोपाल से पीथमपुर तक कचरे को कम से कम समय में ले जाने के लिए यातायात का प्रबंधन करके करीब 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा.

स्वतंत्र कुमार सिंह ने कचरे के परिवहन और उसके बाद पीथमपुर में उसके निपटान की कोई निश्चित तिथि बताने से इनकार कर दिया, लेकिन सूत्रों ने बताया कि हाईकोर्ट के निर्देश के मद्देनजर प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है और कचरा 3 जनवरी तक अपने गंतव्य तक पहुंच सकता है.

अधिकारी ने बताया कि शुरुआत में कचरे का कुछ हिस्सा पीथमपुर की निपटान इकाई में जलाया जाएगा और अवशेष (राख) की वैज्ञानिक जांच की जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि उसमें कोई हानिकारक तत्व तो नहीं बचा है.

सिंह ने कहा, "अगर सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरा तीन महीने में जलकर राख हो जाएगा. अन्यथा जलने की गति धीमी कर दी जाएगी और इसमें नौ महीने तक का समय लग सकता है."

उन्होंने बताया कि भस्मक से निकलने वाले धुएं को चार परत वाले विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया का हर पल रिकॉर्ड रखा जाएगा.

सिंह ने बताया कि जब कचरे को जलाकर हानिकारक तत्वों से मुक्त कर दिया जाएगा, तो राख को दो परतों वाली मजबूत 'झिल्ली' से ढक दिया जाएगा और 'लैंडफिल' में दफना दिया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए.

उन्होंने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में एक विशेषज्ञ दल द्वारा कचरे को नष्ट किया जाएगा और एक विस्तृत रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी जाएगी.

स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं के एक समूह का दावा है कि 2015 में पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर 10 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को नष्ट किए जाने के बाद आसपास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए हैं. हालांकि, सिंह ने इस दावे को खारिज कर दिया.

उन्होंने कहा, "साल 2015 के इस परीक्षण की रिपोर्ट और सभी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में 337 मीट्रिक टन यूनियन कार्बाइड कचरे को नष्ट करने का निर्णय लिया गया है."

उन्होंने कहा, "इस इकाई में कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए सभी व्यवस्थाएं हैं और चिंता की कोई बात नहीं है."

करीब 1.75 लाख की आबादी वाले पीथमपुर में कचरा पहुंचने की खबरों के बीच रविवार को बड़ी संख्या में लोगों ने हाथों पर काली पट्टी बांधकर विरोध रैली निकाली.

'पीथमपुर क्षेत्र रक्षा मंच' नामक समूह के नेतृत्व में लोगों ने 'हम पीथमपुर को भोपाल नहीं बनने देंगे' और 'पीथमपुर बचाओ, जहरीला कचरा हटाओ' जैसे नारे लिखी तख्तियां थाम रखी थीं.

प्रदर्शनकारी राजेश चौधरी ने कहा, "हम चाहते हैं कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को नष्ट करने से पहले वैज्ञानिकों द्वारा पीथमपुर की वायु गुणवत्ता की फिर से जांच की जाए. हम न्यायालय में अपना पक्ष रखने की पूरी कोशिश करेंगे."

इंदौर से करीब 30 किलोमीटर और जिला मुख्यालय धार से 45 किलोमीटर दूर औद्योगिक नगर पीथमपुर में करीब 1,250 छोटी-बड़ी इकाइयां हैं.

पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने कहा, "हम पीथमपुर की औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में यूनियन कार्बाइड अपशिष्ट को जलाने के लिए की गई व्यवस्था से संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा कि निराधार आशंकाओं के आधार पर अपशिष्ट निपटान को हौवा नहीं बनाया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों को डरना नहीं चाहिए. लेकिन अगर अपशिष्ट विनाश के दौरान पीथमपुर में कोई दुर्घटना होती है, तो उनका संगठन विरोध करेगा.

पता हो कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट लीक हुई थी, जिससे 5 हजार 479 लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख से अधिक लोग सेहत संबंधी समस्याओं और विकलांगताओं से ग्रसित हो गए थे. तब से अब तक फैक्ट्री बंद पड़ी है और कचरा भोपाल के सीने पर बोझ की तरह जमा है. 

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