अमेरिकी दबाव बेअसर: भारत क्यों नहीं रुकेगा रूसी तेल खरीदने से? जानिए 5 बड़े कारण

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नई दिल्ली
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के साथ ही रूस से तेल एवं गैस खरीदने पर जुर्माना लगाने की भी घोषणा की थी। इस धमकी के बाद वाइट हाउस को उम्मीद थी कि भारत दबाव में आ जाएगा और रूसी तेल के कंटेनर भारतीय बंदरगाहों की ओर आना बंद कर देंगे। लेकिन ट्रंप प्रशासन की उम्मीदों के उलट, भारत ने अपने रुख को और सख्त करते हुए रूसी कच्चे तेल का आयात जारी रखा। भारत ने अमेरिका के उन दावों को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि भारत ने रूसी तेल के शिपमेंट लेना बंद कर दिया है। भारत ने सोमवार को ट्रंप की चेतावनी का जवाब देते हुए कहा कि रूसी तेल खरीदने के लिए भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी "अनुचित और अव्यवहारिक" है। भारत के इस कड़े जवाब के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से तीखी प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही थी- और वैसा ही हुआ।

ट्रंप का बयान और भारत का जवाब
अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा, "भारत न केवल रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि खरीदे गए तेल का एक बड़ा हिस्सा खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहा है। उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि यूक्रेन में रूसी युद्ध मशीन कितने लोगों की जान ले रही है। इस वजह से, मैं भारत द्वारा अमेरिका को भुगतान किए जाने वाले टैरिफ को काफी हद तक बढ़ाने जा रहा हूं।" इसके जवाब में, भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "भारत को निशाना बनाना अनुचित और अव्यवहारिक है। किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तरह, भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा।"

भारत ने क्यों अपनाया सख्त रुख- 5 बड़े कारण
भारतीय शेयर बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, नई दिल्ली का रुख केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से परे है। भारत दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रख रहा है, जिसमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सुरक्षा और स्वायत्तता सुनिश्चित करना शामिल है। विशेषज्ञों ने भारत के इस दृढ़ रुख के पांच प्रमुख कारण बताए:

1. ट्रंप-भारत-रूस त्रिकोण
बसव कैपिटल के सह-संस्थापक संदीप पांडे ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति ने संकेत दिया था कि पाकिस्तान उनके करीब है, क्योंकि उन्होंने आईएमएफ सहायता को रोकने के लिए अपने वीटो पावर का इस्तेमाल नहीं किया। इसलिए ऐसा लगता है कि भारत ने यह निर्णय लिया है कि अमेरिका उसका 'मित्र' है, जबकि रूस उसका 'भाई' है। जब नई दिल्ली को चुनना होगा, तो वे मित्र के बजाय भाई को चुनेंगे।”

2. भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर नई दिल्ली का कड़ा रुख
भारत का जीडीपी काफी हद तक कृषि पर आधारित है। यदि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के तहत कृषि क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोला जाता है, तो महंगाई, विकास दर जैसे कारक भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर जा सकते हैं। संदीप पांडे ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान है, जहां राष्ट्रीय जीडीपी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा कृषि क्षेत्र से आता है। इस क्षेत्र को अमेरिका जैसे विदेशी खिलाड़ी के लिए खोलने से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि महंगाई और आर्थिक विकास जैसे महत्वपूर्ण कारक सरकार के नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इससे अमेरिका को भारतीय अर्थव्यवस्था तक पहुंच मिल जाएगी, जो भारत के लिए खतरा हो सकता है।

3. रूस से नैफ्था आयात: चीन के दबदबे को चुनौती
भारत ने हाल ही में रूस से नैफ्था (Naphtha) का आयात शुरू किया है, जो पेट्रोकेमिकल, प्लास्टिक और रक्षा निर्माण जैसे क्षेत्रों में कच्चे माल की आपूर्ति के लिए अहम है। वाई वेल्थ के निदेशक अनुज गुप्ता ने कहा, "भारत का रूस से कच्चा तेल आयात रोकना असंभव लगता है, क्योंकि भारत ने रूस से नेफ्था आयात शुरू किया है। यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में अगला कदम है, जो रासायनिक, प्लास्टिक और रासायनिक रेजिन के आयात में चीन के एकाधिकार को तोड़ने की कोशिश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस यूरोपीय और अन्य देशों को नेफ्था निर्यात नहीं कर पा रहा है, जिसके चलते चीन का वैश्विक व्यापार में एकाधिकार बढ़ गया। भारत का यह कदम इस एकाधिकार को तोड़ने की दिशा में है और भारत जल्द ही अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद नेफ्था का शुद्ध निर्यातक बन सकता है।"

एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज की वरिष्ठ शोध विश्लेषक सीमा श्रीवास्तव ने कहा, "रूस से नेफ्था आयात का भारत का निर्णय आर्थिक लचीलापन बढ़ाने और औद्योगिक आधार को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव है। यह कदम महत्वपूर्ण सप्लाई चैन में विविधता लाता है, जो पारंपरिक स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने और पेट्रोकेमिकल्स और रक्षा विनिर्माण जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों में लागत को कम करने के लिए आवश्यक है।"

4. आत्मनिर्भर रक्षा प्रणाली का निर्माण
भारत लंबे समय से रूस से न केवल हथियार खरीदता रहा है, बल्कि रक्षा तकनीक भी शेयर करता रहा है। नैफ्था आयात से भारत को रक्षा उत्पादन (जैसे फाइटर जेट और ड्रोन्स) में नई ऊर्जा मिलेगी। संदीप पांडे ने कहा, "अमेरिकी प्रशासन रूसी तेल आयात के जरिए कई लक्ष्य साधने की कोशिश कर रहा है। वे जानते हैं कि रूस भारत को लड़ाकू विमान और उनकी तकनीक ट्रांसफर करता है, जिसने भारत को स्वदेशी लड़ाकू विमान विकसित करने की स्थिति में ला दिया है। रूस से नेफ्था आयात शुरू करना भारत-रूस रक्षा संबंधों को मजबूत करने की दिशा में अगला कदम है। यह भारत को लड़ाकू विमानों और रक्षा ड्रोनों के लिए बॉडी विकसित करने में मदद करेगा। इसलिए, रूसी कच्चे तेल के आयात को रोकने की अमेरिकी मांग को स्वीकार करना वास्तविकता से परे है।"

5. जवाबी टैरिफ और डिजिटल टैक्स की तैयारी
सेबी-पंजीकृत मूलभूत विश्लेषक अविनाश गोरक्षकर ने कहा, "जिस तरह अमेरिकी सरकार ने भारतीय आयात पर टैरिफ बढ़ाया है, उसी तरह भारतीय सरकार भी अमेरिकी आयात पर टैरिफ बढ़ा सकती है। हालांकि, अमेरिकी टैरिफ एक धमकी की तरह हैं, जबकि भारतीय टैरिफ एक कूटनीतिक कदम होगा। भारत सरकार ऑनलाइन डिजिटल विज्ञापनों से होने वाली आय पर डिजिटल टैक्स फिर से लागू करने पर विचार कर सकती है, जो माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अल्फाबेट, गूगल, अमेजन जैसे अमेरिकी टेक दिग्गजों के लिए हानिकारक होगा।"

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