विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र को बताया पुरानी कंपनी

Share on Social Media

नई दिल्ली
 जमाने की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे तो इंसान हो या संस्थान, हिकारत ही झेलता है। और यही हाल है संयुक्त राष्ट्र का। दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत आज इस हालत में पहुंच गई है कि इसकी उपयोगिता पर उठे सवालों की जड़ें लगातार गहरी हो रही हैं। विश्व जब आज बहुध्रुवीय अवस्था में कहीं युद्ध तो कहीं युद्ध जैसे हालात का सामाना कर रहा है तो संयुक्त राष्ट्र का मूकदर्शक बनकर ठिठके रहना इस संस्था के निष्प्रभावी होने का पर्याप्त संकेत है। यही वजह है कि भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र को एक पुरानी कंपनी करार दे दिया जो बाजार से कदमताल तो नहीं मिला पा रही है, लेकिन जगह घेर रखी है।
संयुक्त राष्ट्र की तुलना पुरानी कंपनी से

जयशंकर ने यूएन की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक पुरानी कंपनी की तरह है जो बाजार के साथ पूरी तरह से नहीं चल पा रही है, लेकिन जगह घेरे हुए है। कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में एक बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में दो बहुत ही गंभीर संघर्ष चल रहे हैं। और इन पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका क्या है? विदेश मंत्री ने कहा, 'निश्चित रूप से एक दर्शक की।' उन्होंने अमेरिकी चुनावों के संभावित नतीजों पर एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका ने भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में वास्तविक बदलाव किया है। उन्होंने कहा कि नवंबर में चाहे जो भी नतीजे हों, इनमें से कई रुझान आने वाले दिनों में तेज होंगे।

कौटिल्य इकनॉमिक कॉन्क्लेव में बोले जयशंकर

जयशंकर ने 'भारत और दुनिया' विषय पर आयोजित इंटेरेक्टव सेशन में भाग लिया और बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच भारत की भूमिका और चुनौतियों के बारे में बात की। जयशंकर ने श्रीलंका जैसे अपने पड़ोसी देशों के साथ-साथ अन्य देशों की मदद के लिए उठाए गए कुछ कदमों की चर्चा की। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपनी आगामी पाकिस्तान यात्रा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने फिर से अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ किसी भी द्विपक्षीय बातचीत से इनकार किया।

पाकिस्तान दौरे को लेकर क्लियर कट

जयशंकर ने कहा, 'मैं वहां एक खास काम, एक खास जिम्मेदारी के लिए जा रहा हूं। चूंकि मैं अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेता हूं इसलिए मैं एससीओ मीटिंग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए वहां जा रहा हूं, और बस यही करने जा रहा हूं।' विदेश मंत्री ने शनिवार को भी कहा था कि वह बहुपक्षीय कार्यक्रम में हिस्सा लेने इस्लामाबाद जा रहे हैं, न कि भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा करने।

संयुक्त राष्ट्र की कड़ी आलोचना

बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने विश्व निकाय के बारे में काफी आलोचनात्मक नजरिया पेश किया।उन्होंने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र एक तरह से एक पुरानी कंपनी की तरह है, जो बाजार के साथ पूरी तरह से नहीं चल पा रही है, लेकिन जगह घेरे हुए है। और, जब यह समय से पीछे होता है, तो इस दुनिया में आपके पास स्टार्ट-अप और इनोवेशन होते हैं, इसलिए अलग-अलग लोग अपनी चीजें खुद करने लगते हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'तो आज आपके पास संयुक्त राष्ट्र है, हालांकि कामकाज में कितना भी दोयम दर्जे का क्यों न हो, यह अभी भी एकमात्र वैश्विक पंचायत है।'

विदेश मंत्री ने कहा, 'लेकिन, जब यह प्रमुख मुद्दों पर आगे नहीं बढ़ पाता है तो देश इसे करने के अपने-अपने तरीके खोज लेते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले पांच-दस वर्षों को ही ले लीजिए, शायद हमारे जीवन में सबसे बड़ी चीज जो हुई वह थी कोविड। संयुक्त राष्ट्र ने कोविड पर क्या किया? मुझे लगता है कि जवाब है- बहुत ज्यादा नहीं।' जयशंकर ने कहा, 'आज दुनिया में दो संघर्ष चल रहे हैं, दो बहुत ही गंभीर संघर्ष, उन पर संयुक्त राष्ट्र कहां है, बस एक दर्शक की मुद्रा में।'

यूएन की निष्क्रियता से खुद फैसले लेने लगे देश

इससे हो यह रहा है कि सभी ने अपने-अपने हिसाब से कदम उठाए, जैसे कि कोवैक्स जैसी पहल जो कई देशों के एक समूह ने की थी। उन्होंने कहा, 'जब अब बड़े मुद्दों पर कुछ करने को लेकर सहमत होने वाले देशों के समूह बढ़ रहे हैं।' उन्होंने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी), ग्लोबल कॉमन्स की देखभाल के लिए इंडो-पैसिफिक में क्वाड, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) और आपदा प्रतिक्रियाशील अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) जैसी संपर्क पहलों का हवाला देते हुए कहा कि ये सभी निकाय संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के बाहर आए हैं। जयशंकर ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र तो रहेगा, लेकिन संयुक्त राष्ट्र से इतर का स्थान भी तेजी से तैयार हुआ है जो सक्रिय है और मुझे लगता है कि यह संयुक्त राष्ट्र पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।'

संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत लेकिन हो नहीं रहे

जयशंकर ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों का अदूरदर्शी दृष्टिकोण वैश्विक निकाय के लंबे समय से लंबित सुधार में आगे बढ़ने से रोक रहा है। पांच स्थायी सदस्य रूस, यूके, चीन, फ्रांस और अमेरिका हैं और ये देश किसी भी वास्तविक प्रस्ताव को वीटो कर सकते हैं। जयशंकर से अमेरिकी चुनावों के संभावित नतीजे और नई सरकार के साथ भारत कैसे जुड़ेगा, इस बारे में भी सवाल किया गया। इसके जवाब में उन्होंने कहा, 'पिछले पांच वर्षों पर गौर करें तो पता चलेगा कि ट्रंप प्रशासन की कई नीतियां वास्तव में न केवल बाइडेन प्रशासन ने आगे बढ़ाई गईं बल्कि उन्होंने उन नीतियों का विस्तार किया।' उन्होंने कहा कि अमेरिका को यह बात समझ आ गई है कि जिस व्यवस्था को उसने कई साल पहले खुद तैयार किया था, वह अब उस हद तक उसके फायदे के लिए काम नहीं करती है।'

संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के अनुसार, अपनी स्थापना के 75 से अधिक वर्षों के बाद संयुक्त राष्ट्र अभी भी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने, जरूरतमंदों को मानवीय सहायता देने, मानवाधिकारों की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम रखने के लिए काम कर रहा है। भारत बदलते समय के साथ तालमेल बिठाते हुए संयुक्त राष्ट्र और इसकी सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधारों की मांग करता रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *