सिम बाइंडिंग से WhatsApp जैसे ऐप्स सिर्फ एक फोन पर? यूजर्स को हो सकती है परेशानी
नई दिल्ली
भारत इस वक्त डिजिटल फ्रॉड के ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां हर फोन कॉल, हर मैसेज और हर लिंक शक के घेरे में आ चुका है. डिजिटल अरेस्ट, फर्जी पुलिस कॉल, बैंक इम्पर्सोनेशन और फिशिंग ने टेक्नोलॉजी को सहूलियत से डर में बदल दिया है. ऐसे माहौल में सरकार जब सिम बाइंडिंग जैसे कदम की बात करती है, तो पहली नज़र में ये एक सख्त लेकिन ज़रूरी फैसला लगता है.
लेकिन टेक्नोलॉजी की दुनिया में अक्सर वही फैसले सबसे ज़्यादा नुकसान करते हैं जो देखने में बहुत आसान लगते हैं. सिम बाइंडिंग क्या है और क्यों इसकी चर्चा चल रही है. एक तरफ जहां टेलीकॉम कंपनियां सिम बाइंडिंग के सपोर्ट में दिख रही हैं वहीं दूसरी तरफ यूजर्स, एक्सपर्ट्स और बड़ी कंपनियां इससे अलग राय रख रही हैं.
ज्यादातर एक्सपर्ट्स की राय यही है कि सिम बाइंडिग के फायदे तो हैं, लेकिन यूजर्स के लिए डेली ऐप यूज में मुश्किल खड़ा कर सकता है और ये महंगा अफेयर भी हो सकता है.
एक टेक एडिटर के तौर पर, जिसने टेलिकॉम पॉलिसी, साइबर फ्रॉड और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स 10 साल तक करीब से कवर किया है, यह कहना ज़रूरी है कि सिम बाइंडिंग फ्रॉड का इलाज कम और सिस्टम की गलत समझ ज़्यादा दिखाता है. इरादा सही हो सकता है, लेकिन तरीका न तो पूरा है और न ही भविष्य के लिए सुरक्षित.
सिम बाइंडिंग और लिमिट्स
सिम बाइंडिंग का कॉन्सेप्ट सीधा है. जिस मोबाइल नंबर से WhatsApp, Telegram या कोई भी मैसेजिंग ऐप रजिस्टर हुआ है, वही सिम कार्ड फोन में होना चाहिए. सिम निकली, बदली या डीऐक्टिवेट हुई तो ऐप काम करना बंद.
कई बार लोग इंडिया से बाहर जाते हैं और रोमिंग प्लान नहीं लेते हैं और वहां होटल के वाईफाई पर डिपेंडेंट रहते हैं. ऐसी स्थिति में अगर सिम बाइंडिंग आ गया तो वो वॉट्सऐप या कोई दूसरा ऐप जो उस फ़ोन से लिंक है यूज़ नहीं कर पाएंगे. वॉट्सऐप चलाने के लिए भी उन्हें महंगे रोमिंग प्लान की ज़रूरत होगी जो 3000-4000 रुपये से स्टार्ट होता है.
थ्योरी में यह एक मजबूत सिक्योरिटी लेयर लगती है. लेकिन असल दुनिया में फ्रॉड जिस तरह काम करता है, वहां यह थ्योरी जल्दी टूट जाती है. आज के साइबर अपराधी एक फोन, एक सिम या एक अकाउंट पर निर्भर नहीं रहते. वे पूरे नेटवर्क पर काम करते हैं. केवाईसी, सिम, बैंक अकाउंट और कॉल सेंटर सब कुछ अलग-अलग लोगों के नाम पर.
ऐसे में सिम को ऐप से बांध देने से अपराधी नहीं रुकते, सिर्फ रास्ता बदलते हैं.
फ्रॉड की जड़ कहां है, और सरकार क्या पकड़ रही है
डिजिटल फ्रॉड की सबसे बड़ी समस्या सिम नहीं है. असली समस्या है फर्जी या किराए की पहचान. भारत में आज भी सिम म्यूलिंग एक बड़ा नेटवर्क बन चुका है, जहां वैलिड केवाईसी पर सिम लेकर उन्हें अपराधी नेटवर्क को सौंप दिया जाता है.
ये सिम पूरी तरह लीगल होते हैं, नंबर भी एक्टिव होते हैं और ट्रैकिंग भी संभव होती है. बावजूद इसके फिर भी फ्रॉड चलता रहता है.
सिम बाइंडिंग इन नेटवर्क्स को तोड़ने की बजाय यह मान लेती है कि अपराधी टेक्नोलॉजी की बेसिक लेयर पर अटके हुए हैं. जबकि हकीकत यह है कि वे सिस्टम की कमजोरियों को बहुत गहराई से समझते हैं. यानी सरकार जिस समस्या का इलाज कर रही है, वो बीमारी की जड़ नहीं है.
टेक्निकल हकीकत जिसे नीति से बाहर रखा गया
यहां एक और अहम पहलू है जिस पर बहुत कम बात हो रही है. जिस तरह की सिम बाइंडिंग की कल्पना की जा रही है, वह मौजूदा मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर पूरी तरह संभव ही नहीं है.
Android और iOS दोनों ही ऐप्स को लगातार सिम डिटेल्स या हार्डवेयर आइडेंटिफायर एक्सेस करने की परमिशन नहीं देते. यह कोई कमी नहीं, बल्कि यूज़र प्राइवेसी की बुनियाद है. इसी वजह से आज तक कोई भी मैसेजिंग ऐप ‘हर समय सिम मौजूद है या नहीं’ जैसी जांच नहीं करता.
बैंकिंग ऐप्स यूज़ करते हैं सिम बाइंडिंग
बैंकिंग ऐप्स भी जिसे सिम बाइंडिंग कहा जाता है, वह एक सीमित और टाइमली वेरिफिकेशन होता है, न कि स्थायी निगरानी. सरकार जिस मॉडल को लागू करना चाहती है, वह या तो अधूरा रहेगा या फिर यूज़र एक्सपीरियंस को नुकसान पहुंचाएगा.
अगर आप भी किसी बैंक का ऐप यूज़ करते हैं तो आपने ध्यान दिया होगा वो ऐप बिना रजिस्टर्ड सिम के काम नहीं करता. जिस फ़ोन में अकाउंट से लिंक्ड सिम डला है उस फ़ोन में ही बैंक का ऐप काम करता है. अगर सिम बाइंडिंग हुआ तो दूसरे मैसेजिंग ऐप के साथ भी ऐसा ही होगा.
आम यूज़र के लिए बढ़ता डिजिटल फ्रिक्शन
अगर सिम बाइंडिंग को सख्ती से लागू किया जाता है, तो इसका सीधा असर आम यूज़र की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ेगा. आज लोग एक ही अकाउंट को फोन, लैपटॉप और टैबलेट पर इस्तेमाल करते हैं. मल्टी-डिवाइस एक्सपीरियंस मॉडर्न डिजिटल जीवन का हिस्सा बन चुका है.
सिम बाइंडिंग इस सुविधा को कमजोर कर देगी. बार-बार लॉगआउट, री-वेरिफिकेशन, सिम बदलने पर ऐप बंद होना. ये सब उन लोगों के लिए बड़ी परेशानी बनेंगे जो टेक्नोलॉजी को काम के लिए इस्तेमाल करते हैं.
इंटरनेशनल ट्रैवल करने वाले, ई-सिम यूज़र और फ्रीलांसर सबसे पहले इसकी कीमत चुकाएंगे. फ्रॉड रोकने की कोशिश में सिस्टम ईमानदार यूज़र को सजा देने लगे, तो उस नीति पर सवाल उठना लाज़मी है.
प्राइवेसी और भरोसे का बड़ा सवाल
सिम बाइंडिंग सिर्फ सुविधा या टेक्नोलॉजी का मामला नहीं है. यह डिजिटल प्राइवेसी और भरोसे का भी सवाल है. हर अकाउंट को स्थायी रूप से एक सिम और पहचान से जोड़ देना अनॉनिमिटी को सीमित करता है.
जर्नलिस्ट, व्हिसलब्लोअर्स और संवेदनशील वर्गों के लिए यह जोखिम भरा हो सकता है. हर यूज़र अपराधी नहीं होता, लेकिन सिम बाइंडिंग हर यूज़र को संदिग्ध मानकर सिस्टम डिजाइन करती है. यह सोच लोकतांत्रिक डिजिटल स्पेस के लिए खतरनाक हो सकती है.
टेलिकॉम कंपनियां और पावर का बैलेंस
यह भी संयोग नहीं है कि सिम बाइंडिंग को टेलिकॉम कंपनियों का समर्थन मिल रहा है. इससे नंबर-सेंट्रिक कंट्रोल मजबूत होता है और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दबाव बढ़ता है.
सवाल यह है कि क्या यह फ्रॉड रोकने का प्रयास है या फिर डिजिटल इकोसिस्टम में पावर को दोबारा बैलेंस करने की कोशिश. जब किसी पॉलिसी से यूज़र की सुविधा घटे और इंडस्ट्री का नियंत्रण बढ़े, तो उसे सिर्फ सुरक्षा के चश्मे से नहीं देखा जा सकता.
टेलीकॉम और टेक कंपनियां आमने सामने
डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के सिम बाइंडिंग नियम को लेकर टेलीकॉम कंपनियां और टेक कंपनियां आमने सामने आ चुकी हैं. एयरटेल, जियो और वोडाफोन-आईडिया ने सरकार के इस कदम की सराहना की है. वहीं, दूसरी तरफ टेक कंपनियों ने इस नियम को प्रॉब्लमेटिक बताया है.
दरअसल COAI यानी सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया भारत की टेलीकॉम बॉडी है. ये बॉडी इंडिया के तमाम टेलीकॉम कंपनियों को रिप्रेंजेंट करती है. इसी तरह, BIF यानी ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम एक बॉडी है जो Meta और Google जैसी कंपनियों को रिप्रेजेंट करती है.
BIF का कहना है कि सरकार का सिम बाइंडिंग नियम प्रॉब्लमैटिक है. इसके साथ मोबाइल इंडिया एसोसिएशन ने भी ये दावा किया है कि सिम बाइंडिग से डिजिटल फ्रॉड नहीं रूकेंगे.
दुनिया क्या कर रही है, और हम क्या सीख सकते हैं
दुनिया के ज़्यादातर देशों में मैसेजिंग ऐप्स पर मैन्डेटरी सिम बाइंडिंग नहीं है. वहां फोकस होता है रिस्क-बेस्ड सिक्योरिटी पर, यूज़र बिहेवियर, डिवाइस पैटर्न और स्मार्ट फ्रॉड डिटेक्शन सिस्टम्स पर. कोई भी यह मानकर नहीं चलता कि सिम को ऐप से बांध देने से अपराध खत्म हो जाएगा. क्योंकि अपराधी हमेशा सिस्टम से एक कदम आगे रहते हैं.
सही सवाल, गलत जवाब
भारत का सवाल बिल्कुल सही है. डिजिटल फ्रॉड कैसे रुके. लेकिन सिम बाइंडिंग इसका सही जवाब नहीं है. यह एक ऐसा समाधान है जो देखने में मजबूत लगता है, लेकिन अंदर से खोखला है.
डिजिटल सेफ्टी शॉर्टकट से नहीं आती. उसके लिए गहराई, तकनीकी समझ और यूज़र-केंद्रित सोच चाहिए. अगर हम सिर्फ आसान दिखने वाले उपायों पर भरोसा करेंगे, तो नुकसान अपराधियों को नहीं, आम नागरिक को होगा. सिम बाइंडिंग शायद एक टूल हो सकती है. लेकिन उसे इलाज समझ लेना, सबसे बड़ी गलती होगी.
