600 परिवार बेघर होने की कगार पर; हाईकोर्ट की फटकार के बाद वक्फ बोर्ड ने SC का दरवाज़ा खटखटाया
नई दिल्ली
केरल वक्फ संरक्षण वेधि ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा मुनंबम की विवादित जमीन को लेकर एक जांच आयोग गठित करने के फैसले को सही ठहराया गया था। 10 अक्टूबर को केरल हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एकल-न्यायाधीश के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें सरकार द्वारा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सी.एन. रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में स्थापित किए गए जांच आयोग को अवैध ठहराया गया था। एकल-न्यायाधीश ने मार्च में आयोग के गठन को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामले वक्फ ऐक्ट, 1995 के अधीन वक्फ बोर्ड व ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और सरकार के पास समानांतर जांच कराने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। हालांकि डिवीजन बेंच ने फैसला उलटते हुए कहा कि केरल वक्फ बोर्ड (KWB) का 2019 में जमीन को वक्फ घोषित करना कानूनन गलत था। बेंच ने यह भी कहा कि 1950 में जमीन का जो हस्तांतरण हुआ था, वह वक्फ नहीं बल्कि एक उपहार (गिफ्ट डीड) था, और भूमि को वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया जमीन हथियाने का प्रयास प्रतीत होती है।
पूरा विवाद समझ लीजिए
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मुनंबम की यह जमीन मूल रूप से 404.76 एकड़ थी, जो समुद्री कटाव की वजह से घटकर 135.11 एकड़ रह गई है। 1950 में सिद्धीक सैत नामक व्यक्ति ने यह जमीन फारूक कॉलेज को दान में दी थी। लेकिन तब तक यहां कई परिवार बस चुके थे, जो जमीन का उपयोग करते रहे। वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन वक्फ से संबंधित थी, लेकिन कॉलेज द्वारा बाद के वर्षों में जो भूमि बिक्री स्थानीय निवासियों को की गई, उनमें कहीं भी वक्फ का उल्लेख नहीं था। 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने औपचारिक रूप से भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत किया। इससे पहले हुए सभी बिक्री सौदे अवैध माने गए और लगभग 600 परिवारों पर बेदखली का खतरा मंडराने लगा। इस निर्णय के खिलाफ अपील कोझिकोड के वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित है।
राज्य सरकार की कार्रवाई और विरोध
परिवारों के विरोध को देखते हुए केरल सरकार ने नवंबर 2024 में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया था, ताकि विवाद का समाधान सुझाया जा सके। इसी आयोग को चुनौती देते हुए वक्फ संरक्षण समिति ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर SLP में क्या कहा गया?
केरल वक्फ संरक्षण वेधि ने अपनी याचिका में कहा है कि:
डिवीजन बेंच ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया, जबकि मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित है।
हाईकोर्ट ने विवादित संपत्ति की प्रकृति (वक्फ है या नहीं) पर टिप्पणी की, जबकि यह मुद्दा उसकी सुनवाई का हिस्सा ही नहीं था।
जांच आयोग को सही ठहराकर हाईकोर्ट ने कार्यपालिका के अवैधानिक हस्तक्षेप को वैधता दे दी, जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
यह निर्णय वैधानिक अंतिमता के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि वक्फ मामलों पर अंतिम निर्णय ट्रिब्यूनल का होता है, न कि राज्य सरकार का। याचिका अधिवक्ता अब्दुल्ला नसीह वीटी के माध्यम से दायर की गई है।
अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि:
क्या राज्य सरकार वक्फ विवादों में जांच आयोग गठित कर सकती है?
क्या हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भूमि की प्रकृति पर टिप्पणी की?
और क्या यह निर्णय वक्फ बोर्ड व ट्रिब्यूनल की शक्तियों का हस्तक्षेप है?
मामले पर शीर्ष अदालत की सुनवाई के बाद आगे की दिशा तय होगी।
मुनंबम भूमि को वक्फ के रूप में अधिसूचित करना केरल वक्फ बोर्ड की ‘जमीन हड़पने का हथकंडा’: अदालत
इसी साल 10 अक्टूबर को केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि मुनंबम भूमि को वक्फ के रूप में अधिसूचित करना केरल वक्फ बोर्ड की भूमि हड़पने का हथकंडा था। इसी के साथ अदालत ने विवादित भूमि के स्वामित्व का पता लगाने के लिए एक जांच आयोग नियुक्त करने के सरकारी आदेश को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी एम की पीठ ने कहा कि अनिवार्य प्रक्रिया और वक्फ अधिनियम 1954 और 1955 के प्रावधानों के अनुपालन के अभाव में संबंधित संपत्ति को कभी भी वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता था।
इसने कहा कि विवादित भूमि को वक्फ के रूप में अधिसूचित करना वक्फ अधिनियम 1954 और 1995 के प्रावधानों के विरुद्ध है और ‘केरल वक्फ बोर्ड (केडब्ल्यूबी) की भूमि हड़पने के हथकंडे से कम नहीं है।’ पीठ ने कहा कि इस कदम से उन सैकड़ों परिवारों और वास्तविक निवासियों की आजीविका प्रभावित हुई है, जिन्होंने वक्फ संपत्ति की अधिसूचना जारी होने से दशकों पहले भूखंड खरीदे थे।
पीठ ने 17 मार्च के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील स्वीकार करते हुए कहा कि इन परिस्थितियों में, राज्य सरकार को जांच आयोग (आईसी) गठित करने और रिपोर्ट पेश करने से नहीं रोका जा सकता था। एकल न्यायाधीश ने अपने फैसले में जांच आयोग की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। जांच आयोग की नियुक्ति को बरकरार रखते हुए, पीठ ने कहा कि राज्य सरकार कानून के अनुसार समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है।
