मध्य प्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 1,026 सीटें खाली, छात्रों की कमी चिंताजनक

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 भोपाल
 मध्यप्रदेश के आठ निजी मेडिकल कॉलेजों में नीट पीजी (2025-26) के लिए पहले चरण की काउंसलिंग के बाद भी 1,026 सीटें खाली रह गईं। सामान्य तौर पर जिन क्लीनिकल विषयों के लिए छात्रों में होड़ मची रहती थी, उनमें भी सन्नाटा पसरा है। वहीं, बीते दिनों हाई कोर्ट ने भी निजी मेडिकल कॉलेजों की पीजी काउंसलिंग पर रोक लगा दी है। कारण यह कि नीट पीजी में लगभग 100 प्रतिशत आरक्षण था, जबकि सामान्य सीटें नहीं थीं।

मप्र में राज्य के अभ्यर्थियों को ही प्राथमिकता दी जा रही थी, इसका असर यह हुआ कि डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) द्वारा जारी अंतिम सूची के मुताबिक सबसे ज्यादा रिक्तियां जनरल सर्जरी और जनरल मेडिसिन में हैं, जो मेडिकल छात्रों की पहली पसंद मानी जाती हैं। पहली सूची के बाद जनरल सर्जरी की 125 और जनरल मेडिसिन की 119 सीटें खाली हैं।

एनस्थीसियोलाजी में 99, पैथोलॉजी में 78, पीडियाट्रिक्स (शिशु रोग) में 75 और आर्थोपेडिक्स में 75 सीटें उम्मीदवारों की राह देख रही हैं। सबसे ज्यादा हैरानी रेडियोलाजी विभाग को लेकर है, जहां 59 सीटें अब तक नहीं भर पाईं, जबकि डर्मेटोलाजी की 40 और ऑप्थल्मोलाजी की 43 सीटें भी रिक्त पड़ी हैं। जबकि पिछले साल इस दौरान लगभग 80 प्रतिशत सीटें भर गई थीं।
किस कॉलेज में कितनी सीटें खाली

इंदौर के सैम्स मेडिकल कॉलेज में सर्वाधिक 224 सीटें खाली हैं, जबकि इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में 196 सीटों पर प्रवेश नहीं हो सका। भोपाल के एलएन मेडिकल कॉलेज में 158 और पीपुल्स में 102 सीटें रिक्त हैं। उज्जैन के आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में भी 106 सीटें खाली हैं। अमलतास, आरकेडीएफ और चिरायु मेडिकल कॉलेज में भी 80 से ज्यादा सीटें भरने का इंतजार हैं।
आरक्षित श्रेणियों की सीटें भी खाली

कोटे के हिसाब से देखें तो सामान्य ही नहीं आरक्षित श्रेणियों की सीटें भी खाली हैं। एनआरआई कोटे की कुल 154 सीटें उपलब्ध हैं, जिनमें मेडिसिन, रेडियोलाजी और डर्मेटोलाजी जैसे विषय शामिल हैं। अकेले सैम्स इंदौर में एनआरआई कोटे की 34 सीटें खाली हैं। इसके अलावा ओपन श्रेणी की 30 सीटें (जिनमें मेडिसिन व पीडियाट्रिक्स शामिल हैं) और पीडब्ल्यूडी कोटे की 30 सीटें भी पहली काउंसलिंग में नहीं भर पाईं।
कम मेरिट वाले छात्रों के लिए मौका

हाई कोर्ट की रोक से काउंसलिंग अटकने के कारण छात्रों में अनिश्चितता और मानसिक तनाव बढ़ा है। प्रवेश प्रक्रिया लंबी खिंचने से सत्र में देरी होना तय है। हालांकि, एक हजार से ज्यादा सीटें खाली रहने से कम मेरिट वाले छात्रों के लिए यह सुनहरा मौका है। दूसरे राउंड में कटऑफ नीचे जाने से उन्हें मेडिसिन-सर्जरी जैसी प्रमुख ब्रांच मिल सकती हैं।

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